पच्चीस वर्षों का संघर्ष — ISKCON-बैंगलोर के भक्तों की सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक विजय
16 मई 2025, बैंगलोर/ ISKCON-बैंगलोर के भक्तों का पच्चीस वर्षों का संघर्ष, श्रील प्रभुपाद को ISKCON के आचार्य रूप में स्थापित करने हेतु, अब सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के साथ सफल रहा।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ISKCON-बैंगलोर यह सिद्ध करने में सफल रहा कि श्रील प्रभुपाद ISKCON के एकमात्र आचार्य हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किया कि बैंगलोर स्थित ISKCON-हरे कृष्णा हिल मंदिर ISKCON-बैंगलोर संस्था का है, न कि ISKCON-मुंबई का।
साथ ही, ISKCON-मुंबई को ISKCON-बैंगलोर के कार्यों में हस्तक्षेप न करने का आदेश भी दिया गया है।
पृष्ठभूमि:
1977 में श्रील प्रभुपाद के महासमाधि के पश्चात्, कुछ नेता अपने को आचार्य घोषित कर भक्तों को दीक्षा देने लगे, जो श्रील प्रभुपाद की रित्विक प्रणाली के विरुद्ध था। ISKCON-बैंगलोर ने श्रील प्रभुपाद को एकमात्र आचार्य मानते हुए इस स्वयंघोषित गुरु प्रणाली का विरोध किया।
2000 में ISKCON-मुंबई ने बैंगलोर के हरे कृष्णा हिल मंदिर को हथियाने का प्रयास किया, जिससे यह 25 वर्षीय कानूनी लड़ाई प्रारंभ हुई।
श्री मधु पंडित दास, अध्यक्ष, ISKCON बैंगलोर व चेयरमैन, अक्षय पात्र फाउंडेशन ने कहा:
“यह संघर्ष उन लोगों के विरुद्ध था जो स्वयं को श्रील प्रभुपाद का उत्तराधिकारी बताते हुए दीक्षा देने लगे। ISKCON-बैंगलोर ने सदैव यह मत रखा कि सभी भक्त श्रील प्रभुपाद के शुद्ध शिष्य हैं और वही ISKCON के शाश्वत आचार्य हैं। इस निर्णय ने हमारे इस सत्य को न्यायिक पुष्टि प्रदान की है।”
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के साथ, ISKCON-बैंगलोर अब स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकता है। ISKCON-मुंबई अब इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता और न ही उन भक्तों को निष्कासित कर सकता है जो केवल श्रील प्रभुपाद को अपना आचार्य मानते हैं।
विकास यात्रा:
पिछले 25 वर्षों में, ISKCON-बैंगलोर ने भारत में 25 मंदिर, 8 विदेशी मंदिर, 1000 से अधिक पूर्णकालिक ब्रह्मचारी, और 10,000 से अधिक घर-गृहस्थ भक्तों का संजाल स्थापित किया है। अक्षय पात्र फाउंडेशन भी यहीं से प्रारंभ हुआ जो आज 17 राज्यों में 23 लाख बच्चों को भोजन कराता है।